कैराना I राष्ट्रीय लोक दल सुप्रीमो चौधरी अजीत सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं. पिछली लोकसभा और यूपी के विधानसभा चुनावों में पार्टी ऐसी सिमटी की कोई भाव देने को तैयार ही नहीं हो रहा था. सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी से तोल मोल की कोशिश की तो आळा नेताओं ने साफ कर दिया था कि पार्टी का बीजेपी में विलय कर लें तो ही बेहतर होगा. अब खुद से ज्यादा बेटे जयंत की राजनीति स्थापित करने की चिंता थी लिहाजा अजीत सिंह ने खामोशी से इंतजार करना ही बेहतर समझा. अब लगता है कि महागठबंधन की बढ़ती राजनीति ने उनकी पार्टी को एक बार फिर जिंदा कर दिया है.

दरअसल चौधरी चरण सिंह की विरासत पर अब भी दम भर रहे अजीत सिंह की राजनीति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही सिमट कर रह गई है. बागपत से पिछला लोकसभा चुनाव हार चुके चौधरी अजीत सिंह को मौका मिला कैराना लोकसभा उपचुनावों में. बीजेपी की तरफ खिसक गया जाट वोट बैंक इन चुनावो में वापस आता नजर आया. ऊपर से अखिलेश यादव और मायावती का साथ. एक ऐसा समीकरण बैठा की अजीत  सिंह की राजनीति फिर से चमका दी है. उन्हें यकीन हो चला है कि उनका अपना वोट बैंक वापस आ गया है. अजीत सिंह के कुनबे ने ये भी तय कर लिया है कि अगली लड़ाई महागठबंधन के साथ ही लड़ेगी.

अब अजीत सिंह पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सोए कार्यकर्ताओं को जगाने और मतदाताओं तक पहुंचने की जुगत में लग गए हैं. अजीत सिंह और जयंत चौधरी ने तय किया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की तमाम लोकसभा सीटों पर दोनो जन संपर्क अभियान शुरु करेंगे. अगस्त के महीने से वो सहारनपुर से लेकर अलीगढ़ की तमाम लोकसभा सीटों पर अपना संपर्क अभियान चलाएंगे. ये कोई रोड शो नहीं होगा और ना ही कोई बड़ी रैली होगी. बाप-बेटे की टीम अलग अलग मैदान में निकलेगी और तैयारी हो रही है. मतदाताओं से सीधा संपर्क करने की योजना पर अमल करने की. अपने इस कार्यक्रमों में अजीत सिंह और जयंत चौधरी छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं भी करेंगे और घर घऱ जाकर मतदाताओं से किसानों की समस्याओं और भाई-चारा बढाने के मुद्दे पर अपनी बातें समझाएंगे.


जिन जिलों को दौरा करने का कार्यक्रम अजीत  सिंह ने बनाया है उनमें कुल 20 लोकसभा सीटें आतीं है. इन जिलों में जाट मतदाताओं की संख्या भी खासी ज्यादा है और जो नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसे में तोल मोल करके चौधरी साहब 4 से 5 सीटों पर अपना दावा ठोक सकते हैं. जाहिर है बीजेपी की असली चिंता पिछले चुनावों में बनाया जाति समीकरण का बिगड़ना है. पिछली सरकारों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले ज्यादातर नेता घर बैठे हैं. बीजेपी के पिछे जुटे जाट वोटों का बिखराव भी नजर आने लगा है. तभी तो चौधरी अजीत  सिंह एक बार फिर तोल मोल करने की स्थिति में आ गए हैं.
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